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कुछ देर ही सही / सत्यनारायण सोनी

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अब किताबों में
कुछ भी शेष नहीं।
पत्रिकाओं के पन्ने
खंगालने से अच्छा है
किसी गडरिये से हथाई जोड़ें।
उसकी जिंदगी के पन्ने पलटें
उसकी हँसी में खिलखिलाएं,
उसके दर्द में आहें भरें।

आओ,
उससे भेड़ों के बारे में
गुरबत<ref>गुफ्तगू</ref>करें,
उससे सिर जोड़
चिलम के सुट्टे लगाएं,
धुएं के साथ
अपने सारे दु:ख-दर्दों को
आसमान की ओर उछाल दें।

आओ,
कुछ देर ही सही
किताब पढऩे की बजाय
एक मुकम्मल किताब को जिएं।

2000

शब्दार्थ
<references/>