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कुछ पल ठहर / रमा द्विवेदी
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यॊवन की ऎसी आई लहर,
मन तेरा जाए मचल-मचल।
मतवाली नदी सी दौड. रही,
रुकती नहीं है कहीं एक पहर॥
हिरनी सी कुलाचें मार रही,
दुनिया की तुझको नहीं खबर।
चुनरी तेरी जाए ढुलक-ढुलक,
लग जाय कहीं न किसी की नज़र॥
यॊवन तेरा गया निखर-निखर,
सजने लगी है तू पहर-पहर।
बांध के पांवों में पायल,
जायेगी अब तू बता किधर॥
गली गली और नगर- नगर,
ढूढ. रही तुझे कोई नज़र।
कुछ पल और तू जरा ठहर,
भूल न जाओ कहीं डगर॥