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कूदे उछल कुदाल... / राजेन्द्र प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
(धुन: कीर्तन)
भैया, कूदे उछल कुदाल,
हँसियाँ बल खाये!
भोर हुई, चिड़ियन संग जागे,
खैनी दाब, ढोर संग लागे,
आँगन लीप, मेहरिया ठनकी,
दे न उधार बनियवां सनकी,
कारज-अरज जिमदार न माने,
लाठियल अमला विरद बखाने.
भैया, तामे भूख किवाल,
तिरखा कटखाये!
“साँझ भई, नहिं आय मुरारी,”
-हाट बाट बहके न अनाड़ी,
तीन दीप : तिरलोक दिवाली,
पंजा-छाप :फाग की लाली,
फुटहा-गुड :पकबान परोसे,
कोदो-भात रींध घर पोसे.
भैया, गुजरे दो-दो साल
कुर्ता सिलवाये!
आज रात कम दुखे बिवाई,-
अब न बटेंगे खेत बंटाई,
फरे ‘नगीना,’-पिये पसेना,
बाढ़- सुखाड़ दैव,ना देना,
माथे मौर चढ़े बबुआ के,
बजे रसनचौकी झमका के!
भैया, लहके लाल मशाल,
कुहरा फट जाए!