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कृतज्ञता / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
छोड़ दो
यह ठोर
- मन !
- मन !
किसका इन्तज़ार यहाँ
अब और
- मन !
- मन !
ढल गया दिन
उतर आयी शाम,
घिर रहा
चारों दिशाओं में
अँधेरा
घनेरा !
करो स्वीकार
- मन !
- मन !
यह अकेलापन,
बड़े सुख से
करो स्वीकार
- मन !
- मन !
हे ख़ुदा !
शुक्रगुज़ार,
तेरा
बेहद
शुक्रगुज़ार !