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कृष्ण महिमा / आशा कुमार रस्तोगी
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देवकीनंदन कहूँ, गोकुल का या प्यारा कहूँ,
जो है लीलाधर, उसे निर्लिप्त योगेश्वर लिखूँ।
गोपियों का प्रिय उन्हें, राधा का या प्रियतम कहूँ,
द्वारिका अधिपति कहूँ या अच्युतानंदन लिखूँ।
हाथ में मुरली कभी, पर है गोवर्धन भी कभी,
है अपरिमित स्वयं जो, उसके लिए कितना लिखूँ।
जो सुदामा के सखा बन, साथ खेले और पढ़े,
दे दिये दो लोक जिसने, मित्र पर अब क्या लिखूँ।
साग खाकर विदुर के घर, तृप्त जो हिय से हुये,
भक्त वत्सल श्याम के बारे मेँ, ज़्यादा क्या लिखूँ।
पार्थ के बन सारथी, उपदेश भी जिसने दिये,
ज्ञान का सागर है जो, उस पर अधिक अब क्या लिखूँ।
यूँ जगत को ज़ाहिरा मेँ, प्रेम राधा का दिखा,
कृष्ण के जो दिल पर बीती, लेखनी से क्या लिखूँ...!