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केले / लक्ष्मी खन्ना सुमन
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लो गुच्छे के गुच्छे केले
रसगुल्ले-से मीठे केले
लो लो चित्तीदार मुलायम
चीनी भरे बतासे केले
इधर-उधर मत फेंकों छिलके
फिसला वरन् गिराते केले
बच्चों की खातिर खुद पकते
हरी छाल के कच्चे केले
दादा-दादी, नाना-नानी
सबको अच्छे लगते केले
सूँड़ उठा दे बड़ी सलामी
जब हाथी को मिलते केले
ठेले से ले भागा बंदर
छील-छीलकर खाए केले
'सुमन' नहीं हर मौसम खिलते
पर हर मौसम मिलते केले