भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसा लगता है तुम्हें / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी देवस्थल में
देवता के
चरणों को छूकर
अन्न ...धन ...पद
कीर्ति या अपना कोई और
इच्छित माँगकर
जब निकलते हो बाहर
तो एकाएक तुम्हारे
पैरों की अँगुलियों पर
खुरदुरे ...गंदे
नन्हें बच्चे का
कोमल चेहरा
टकराता है
पैसे या रोटी के लिए
फरियाद करते
तो कैसा लगता है तुम्हें।