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कैसे आज मनाऊँ होली / भावना सक्सैना
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कैसे आज मनाऊँ होली
सरहद पर फिर चली है गोली,
धरा का आँचल लाल हुआ
मूक बाँकुरों की हुई बोली।
क्या उल्लास पर्व का दिल में
आँगन उजड़े, टूटी टोली,
लाल गँवाकर जानें अपनी
खून से खेल गए हैं होली।
आँख गड़ाए कुर्सी पर जो
गिद्ध न समझे खाली झोली,
कानों में पिघले सीसे-सी
उतरे नेताओं की बोली।
अश्रुधार निरन्तर बहती
तीखा लवण जिह्वा पर घोली,
पकवानों का स्वाद कसैला
शान्त पड़े हैं सारे ढोली।
रंग तीन बस दिए दिखाई
सुबह आज जब आँखें खोलीं,
श्वेत, हरे केसरिया जग में
कोयल जयहिंद कूकती डोली।