भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई फ़र्क नहीं पड़ता / ऊलाव हाउगे
Kavita Kosh से
|
यदि टिड्डा
अपनी दराँती तीखी करता है
तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
लेकिन यदि
वनयूका फ़ुसफ़ुसाती है
तो सावधान रहना।
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रुस्तम सिंह