कोरोना और बैंकर्स / प्रवीण कुमार अंशुमान
जीवन खतरें में डालकर,
तय करता जो फासला ।
हर रोज निकलता सबकी ख़ातिर,
बनता सबका जो आसरा ।।
मुद्रा वितरण है जिसका धर्म,
जो रोज निभाता अपना कर्म ।
नोट है छूती जिसको तब,
व्याप्त हो गया भय हो जब ।।
आज है जिसने सीमा लाँघी,
बना है सबका जो अनुरागी ।
बैंकिंग सेक्टर की जो निष्ठा है,
उसमें छुपी जो प्रतिष्ठा है ।।
डॉक्टर्स जहाँ हैं जीवन देते,
अनुशासित करता पुलिसकर्मी ।
पैसों की ज़रूरत को हर पल,
पूरी करता है बैंककर्मी ।।
डिज़िटल पेमेंट की वो कहानी,
नहीं समझ है जिसको आनी ।
उस एक कमी को पूरा करते,
मौजूद सदा जो रहा करते ।।
उस बैंककर्मी के साहस को,
जलती मशाल जैसे ढाढ़स को ।
करता प्रणाम हर एक जन,
जो आज जुटाता है सबका धन ।।
उसका अमिट है योगदान,
जड़ से करता सबका निदान ।
रोज़ जो देता है पौधों को सींच,
कोरोना महामारी के एकदम बीच ।।
उस ख़ास सिपाही के निश्चय को,
सादर प्रणाम है उस एक अक्षय को ।
आज बना जो सबका मीत,
सुनिश्चित करता जो सबकी जीत ।।