भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौआ / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
देखो काला कउआ आया
खाने को मुंह में कुछ लाया
बैठ पेड़ पर खाता रहता
काँव काँव चिल्लाता रहता
क्वार माह में इन्हें खिलाते
ताब तों यह भी खुश हो जाते
इनकी बोली शुभ होती है
भाई आयेगा कहती है
दादी ने ही हमें बताया
खुश होकर हमको समझाया
कौआ बड़ा सयाना होता
काला किन्तु प्रेम मय होता
कोयल के बच्चों का पालक
बड़े प्रेम से उनको रखता
कोई भेद नहीं रखता यह
उड़ जाते तब तकता रहता।