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कौआ और कबूतर / रतन सिंह ढिल्लों
Kavita Kosh से
वह लड़की
जो अपने
सुखे और ख़ुश्क बालों में
कपास की फूल टाँग रही थी
अपने
नंगे पैरों को ताकती
कपास के खेतों से वापस लौट रही थी
कीकर के नीचे
कौवे ने कबूतर को
तार-तार कर दिया था ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला