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कौआ और कोयल / बालकृष्ण गर्ग
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					‘काँव-काँव’ कौए की सुन 
मन करता है, सिर ले धुन।
‘कुहू-कुहू’ कोयल के बैन 
सुनकर मिलता दिल को चैन। 
[रचना: 21 अप्रैल 1996]
	
	