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कौन आज आ गया / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
यह कौन आके चेतना के
द्वार खटखटा गया
यह कौन आ पुकार कर
नींद से जगा गया
जो मर चुके अतीत को
गले लगा के रो रहे
जो मीत-प्रीत सुधियों
के बिछौने पर थे सो रहे
मोह भंग कर के साधना-
का पथ दिखा गया
किसने दी आवाज़ मदहोश।
उठ तू होश कर
तू रौशनी की ले मशाल
अंधेरे आज दूर तक
दृष्टि हो गई साफ-पर्दा-
आँख का हटा गया
यह कौन आज आ गया
मौत से नहीं अरे तू
जिं़दगी से प्यार कर
दलित दरिद्र जिं़दगी को
दिखा संवार कर
मर रही मनुष्यता का रूप
वो दिखा गया।