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कौन मेरे अश्रु पोंछे / विमल राजस्थानी

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कौन मेरे अश्रु पोंछे, कौन मुझको उर लगाये
कौन मेरे अश्रु में, हो द्रवित, निज आँसू मिलाये

कौन है जो लड़खड़ाते को तनिक दे-दे सहारा
कौन-सी वह डाल जिसको थाम ले यह थका-हारा
कौन है जो ढ़ाह दे यह वेदना की क्रूर कारा
कौन तिमिराच्छन्न नभ के बीच चमके बन सितारा

भ्रमित पंथी ज्योति में जिसकी सहज निज पंथ पाये
कौन मेरे अश्रु पोंछे, कौन मुझको उर लगाये

आह! चारों ओर विकृत व्यंग ओढ़े हैं मुखौटे
वे चरण पाऊँ कहाँ जिन पर कि मेरे लोटें
वे खुली बाँहें कहाँ जिनमें कि जीवित शव झुलाऊँ
द्वार सारे बंद किसकी देहरी पर जगमगाऊँ

कौन है वह अंक जिसमें शिशु-सदृश मन शरण पाये
कौन मेरे अश्रु पोंछे, कौन मुझको उर लगाये

-1.1.1976