कौन हो तुम माण्डवी? / आरती 'लोकेश'
महल अट्टालिका पर विचरती,
विकल भाव हिये में है भरती।
मुख पर तेज लिए साध्वी-सा,
साधना किस उद्देश्य माण्डवी?
प्रदीप्त-दीप का थाल करों में,
विरह के गीत सजा अधरों में।
प्रीत-माधुर्य सजल नयनों में,
प्रतीक्षारत उद्विग्न माण्डवी?
सोलह शृंगार संकेत अनुराग,
विह्वल उद्वेलित प्रिय-विराग।
द्रुत पवन छेड़ती राग-बिहाग,
क्या हो तुम परिणीता माण्डवी?
कंगन की क्षीण ध्वनि सहचरी,
झाँझर की रुणझुण ठहरी-ठहरी।
निशा बनी कुटिया की प्रहरी,
निस्तब्ध दिशा परिणति माण्डवी?
दशरथ की होकर पुत्रवधू,
आभा ज्यों कांतिहीन विधु।
स्नेह-शुष्क विचलित दृगु,
श्वसुर-गृह की मर्यादा माण्डवी?
वैराग्यी से बाँध प्रेम की आशा,
महीन डोर से टँकी निराशा।
द्वन्द्व-अंतस विवशता की भाषा,
यशोधरा-सी परित्यक्ता माण्डवी?
भ्रातृभक्त की मात्र संयोगिनी,
एकनिष्ठ अद्वितीय वियोगिनी।
अपूर्व मार्ग तपस्विनी योगिनी
श्रद्धा-धैर्य-बलि मूर्त माण्डवी?
परिणय-बंधित मधुमास नहीं,
प्रियतम प्रणय-विलास नहीं।
निर्जीव निष्प्राण, श्वास नहीं,
नियति कटु विकास माण्डवी?
कर्त्तव्यपरायणता बही अकम्पन,
अर्धांगिनी संवेदना का स्पन्दन,
शोभित प्रशस्ति मस्तक चन्दन,
समर्पित स्वामी वंदन माण्डवी?
उपजाने जग-अर्थ अमर दृष्टांत,
व्यथित स्वप्न सुशांत विश्रांत।
संयत कर निज तन-मन क्लांत,
धर्महित सम्बल आद्यांत माण्डवी?
द्वापर युग हो या हो त्रेता,
राम-लक्ष्मण, पुरुष विजेता।
स्मरण सुयश भरत प्रणेता,
उस योगी निवेदित प्रभा माण्डवी?
शाश्वत मूल्य वृद्धि, न ह्रास,
पात्र न भव-कालिक परिहास।
नारी गरिमा की परख उजास,
स्वर्णिम रच इतिहास माण्डवी!