भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या कभी एकता आएगी / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
कहाँ हूँ
यहाँ हूँ
वहाँ हूँ
रात भी
बात भी
बीत ही
जाएगी
फिर कभी
आएगी
जहाँ हूँ
आदमी
आदमी
हैं सभी
क्या कभी
एकता
आएगी
क्या कभी
जहाँ हूँ