भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या बचेगा / मीता दास
Kavita Kosh से
हम अपना गणतंत्र मनायें या बचाएं
बेहद दुविधा में हूँ जन नायक !
देश बचायें या देशभक्ति
बेहद दुविधा में हूँ प्रजा नायक !
धर्म बचायें या मठ , पीर-पैगम्बर
बेहद दुविधा में हूँ राष्ट्र नायक !
राष्ट्र भाषा बचायें या राष्ट्र
बेहद दुविधा में हूँ अधिनायक !
मातृभाषा बचायें या आदि भाषा
बेहद दुविधा में हूँ परिधान नायक !
खेत बचायें या जन्मभूमि
बेहद दुविधा में हूँ खलनायक !