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क्रोशिया / सोनी पाण्डेय

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क्रोशिया चलाते उसका हाथ
नाचता है एक लय में
ऊँगलियों में लपेटा ऊन
सरकता जाता है
सरसराते हुए
ऊन का गोला घूमता है लट्टू की तरह
बदलता जाता है
खूबसूरत मफलर में
बुनते हुए बार- बार मुस्कुराती है
ठहर-ठहर गिन लेती है फन्दे
जिसे पहली बार डालते हुए
हुई थी लाल
ना जाने कितने प्रेम-पत्र सहेजे क्रोशिया
चलता जाता
जैसे बाच लेगा हर आँख की परिधि में कैद
गुलाबी प्रेम-पत्र...

अब लड़कियाँ मफलर नहीं बुनतीं
क्रोशिया बचा है कुछ प्रौढ़ हाथों में
जिससे बार-बार बुनती हैं
मांग कर सबसे ऊन
कहतीं
कुण्ठा कम होता है सिरजने से
दबा लेती है कुछ हर्फ़
प्रेम की भाषा का मौन निवेदन टांकती हैं
बार-बार क्रोशिए से।