खरगोश नहीं हैं लोग / राकेश रोहित
आज जब मेरे पास सिर्फ़ शब्द हैं
आप पूछते हैं शब्दों से क्या होता है ?
और जो कुछ शब्दों के सहारे
काट लेते हैं पूरी ज़िन्दगी
क्या आप उनसे भी यही सवाल पूछेंगे ?
मैं जानता हूँ आप पूछ सकते हैं
क्योंकि निर्दोष नहीं है आपकी हँसी भी
जो एक तमाशे की तरह धीरे-धीरे फैलती है
तो चाटुकारों को एक नया काम मिल जाता है ।
प्रशंसा की काई फैल गई है
आपकी ज्ञानेन्द्रियों पर
आप सोचते हैं आप ख़ुश हैं
इसलिए ख़ुश हैं सारे लोग !
आप जान नहीं पाते
आप इसलिए ख़ुश हैं
कि आपकी ख़ुशी की लोगों को परवाह नहीं है ।
...और जिन शब्दों के प्रति संशय से
चमकता है आपका ललाट
उन्हीं शब्दों को बचाने के लिए
तूफानों से लड़ते हैं लोग
जिनके बारे में आप समझ बैठे हैं
कि वे इच्छाओं की झाड़ियों में दुबके हुए खरगोश हैं ।