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ख़ालीपन / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
आसमान की तरह
जो गिरगिट-सा रंग बदलता है
दिन और रात में
आईने पर भाप हो तो
नहीं दिखता साफ़ चेहरा
एक बैचनी होती है
अपना चेहरा साफ़ देखने की
जब दिखाई देता है साफ़ और ठहरा हुआ
वही पिघलने लगता है फिर अन्दर ही अन्दर
ख़ालीपन एक भरा-पूरा लफ़्ज़ है।