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खाइबि तब जानबि / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
ओठे पपरी
लाख दिलासा
खाइबि तब जानबि।
एको कवर गइल सुबहित ना
मन पँवरे सगरी
राह कठिन ओठन पर मुसकी
माथ भरल गगरी।
कइसन कजरी
कइसन फगुआ
गाइबि तब जानबि।
पानी नियन बहल पइसा
बबुआ मन से पढ़ले
माई बाबू सङ मन में
दुनिया नवकी गढ़ले।
गरदन फँसरी
तेज दउड़ बा
जाइबि तब जानबि।
समता का मकुनी में
सुंदर बइमानी पूरन
हरिआए मन छिरकइला पर
जिनिगी के चूरन।
बरिसे बदरी
चानी सोना
पाइबि तब जानबि।