भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली सीपी में समुन्दर / अंजना टंडन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे समन्दर लिखता है बादल
जैसे बादल बनते है हरा
जैसे हरा साथी है तितलियों का
जैसे तितली का माथा चूमता है कोई बच्चा
जैसे बचपन की आँख में है उजला सहज प्रेम,

नीली चादर लपेटे
वृत के आखिरी सिरे पर से अब
 लौट जाना चाहती हूँ,

लौट आऊँगी बूढें कदमों से
बचपन को रोपने के लिए
हँडिया की भूख की तृप्ति के लिए
फसलों की सूखी आँख में नमी के लिए
समन्दर के किनारे रेत के घरौंदों के लिए,

बस
मृत्यु की परछाई आने के बाद भी शेष रहूँगी
जितना किसी खाली सीपी में
बचा रहता है समन्दर....।