भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खाली हाथ / सीमा सोनी
Kavita Kosh से
मैंने अपनी भावनाएँ
मिट्टी में दबा दीं
अपने आँसू
रख दिए कमल की पंखुड़ियों पर
इच्छाओं को कर दिया विसर्जित
नदी में
सपनों को टांग दिया तारों पर
अपने दुख लौटा दिए मैंने
राहु और केतु को
सुखों को भेज दिया
देवलोक
बचा कर रखी मैंने अपने पास
सिर्फ़ अपनी साँस
क्योंकि साँस नहीं है
मेरे हाथ।