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खिड़की जितनी जगह / वंदना मिश्रा
Kavita Kosh से
दीदी लोग पड़ोस के मौर्या जी के
घर चली गई थी
बहू देखने
जबकि पिता जी और उनमें
दीवार के लिए लाठी
और मुकदमा चल चुका था
सचमुच।
चुपके से गई और बहू देखने की
फरमाइश कर दी
मौर्या जी
बड़बड़ाये
पर उनकी पत्नी
हँस के बोली
घर से बिना बताए आई हैं
ये सब
दिखा दो
बहू देख
उससे गाना सुन,
लड्डू ले लौटी तो
उसे छिपाना
बड़ा कठिन लगा उन लोंगों को
कुछ खाया छत पर जा
कुछ फेक दिया
बाद के दिनों में
मुहल्ले की किसी स्त्री
के आने पर बढ़-चढ़ के बड़ाई की
बहू की तो पोल खुली
माँ ने हँसते हुए धमकाया
फिर पता नहीं क्या गुप्त सन्धि हुई
कि खिड़की से देख नई बहू को
माँ ने मुँह दिखाई दी
दीवारें नहीं टूटती
पर महिलाओं ने
हमेशा बना रखी है
एक खिड़की जितनी जगह
प्रेम के लिए।