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खिलें रंग अनेक / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
मैं
मैं ही रहा
तुम-तुम
वह
वह ही रहें
हम-हम
आओ
रहने का फ़ासला रहने दें यहीं
हो जाएँ मिलकर एक
खिले रंग अनेक