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खुदा-४ /गुलज़ार
Kavita Kosh से
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने--
काले घर में सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था, मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने एक चिराग जला कर,
अपना रास्ता खोल लिया
तुमने एक समंदर हाथ में लेकर, मुझ पर ढेल दिया
मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी
काल चला तुमने, और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया --
मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का खोल उतर के सौंप दिया --और
रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाजी