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खेत / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
तुम्हारे पास हम
बरसों से नहीं गये
मिट्टी और किनारे की घास को
कबसे नहीं देखा
फिर भी पहुंचाते रहे थे तुम
हमें ताज़ा अनाज
एक पैगाम सदा आता रहा
खुशबू से भरा
रिश्तों को तुमने हमेशा सींचा
बोने से ज्यादा फसल देकर
इधर हम हुए कि
एक बड़ी रकम लेकर
सेठ से
कर आये तुमसे रिश्ता खत्म
कचहरी में करके
एक हस्ताक्षर