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गंगा दशहरा / सुलोचना वर्मा
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जो फेंका तुमने निर्माल्य को नदी में
मछली दे देगी श्राप तड़पकर
और तुम बन जाओगे मछली अगले जनम में
फिर होगा तुम्हारा जन्म किसी नाले में
मत डालो अब गंगा में धूप-लोबान
कि वह जल रही है धरती की चिता पर
सती की मानिन्द, एक लम्बे समय से
क्यूँ कुरेद रहे हो उसका मन तुम बारहों मास
और बना रहे हो झील निकालकर उसमें से रेत
लील लेगी एक दिन तुम्हे भी उसकी बदली हुई चाल
जाओ, शंखनाद कर रोक लो नदी पर बनता बाँध
कर आओ प्राण प्रतिष्ठा पहाड़ों पर लगाकर कुछ पेड़
फिर सुनाओ मछलियों को ज़िन्दगी का पवित्र मन्त्र
और मना लो गंगा दशहरा इस सही विधि के साथ ।