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गंध को कैसे बाँधू / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
मुझे
गंध को मुट्ठियों में बाँधने न कहो
जो हाथ आती हैं
वे फूल की पंखुड़ियाँ
संभव है, फूलों के रंग से
अंगुलियाँ भी रंग जाए
और हथेली इन्द्रधनुष हो जाए
संभव है
पराग भरे फूल
हथेलियों को
तितली के पंख कर जाए
लेकिन फूलों की गन्ध को
इन अंगुलियों से कैसे छूऊँ
मुट्ठियों में कैसे बाँधू
जो हवा की सखा होती है ।
मेरी मध्यमा पर
उग आये कचनार के कुसुम
मत कहो अपनी गंध को
मुझसे
मुट्ठियों में बाँध लेने
मेरी अंगुलियों को
पलाश ही बनने दो
हथेलियों को इन्द्रधनुष ही होने दो
तितली के पंख ही बनने दो
गंध को तो
यादों में बाँधना भी दुष्कर होता है
मैं गंध को मुट्ठियों में कैसे बाँधू ।