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गळगचिया (61) / कन्हैया लाल सेठिया
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जीभ नै काबू में राखणै ताँई कूदरत दाँताँ रा सीकचा लगाया, होठाँ रा परकोटा बणाया‘र मौन रो ताळो लगा‘र ग्यान री कूंची मिनख नें सूँप दी । जीभ री बाळपणै री साथण पर निन्दा आ देख र सोच में पड़गी र आप री भायली जीभ नै कुदरत री कैद स्यूं छुडाणै रो उपाव सोचण नै लागगी । एक दिन पर निन्दा सुन्याड़ देख'र मिनख रै मन रै मै‘ल मै जा पूगी। मिनख 'पर निन्दा' री कानाँ मीठी बोली सुण‘र आप रो आयो भूलग्यों । 'पर निन्दा' तो धार विचार‘र आई ही मिनख नै आप रै वश में जाण'र हौळै सी ग्यान री कूँची आप रै कबजै में करली'र मौन रो ताळो खोल जीभ नै सागै ले'र चट बारै निकलगी।