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गळगी हेत में / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
आभै रै लूमतै बादळ सूं
छुड़ाय हाथ,
मुळकती-ढ़ुळकती
बा नान्ही सी छांट!
छोड़ देह रो खोळ,
सैह‘परी बिछोह..!
गळगी- हेत में,
रळगी- रेत में।