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गाँव-गली में / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
गाँव-गली में हमरे खिस्सा चुपके से बतिआवय लोग।
आइत-जाइत कुछ अजब नजर से देखय आउर देखावय लोग।
बात तो दिल के ही दिल कहलक ई ऐसन कोय बात जो नञ।
पूजा बस पूजा हे पिरितिया नाहके उजुर जताबय लोग।
मना-मना के हार गेलूँ बकि मनवाँ तो निकालल पगला।
ढीठ ई, चाहल कर गुजरल, तब की एकरा समझावय लोग।
जीअय-मरय के फिकिर कहाँ तनिकों होवय परबाना के।
लौ के चाह में पल-पल जल-जल नेह के रीत निभावन लोग।
जात-धरम आउ रसम-रिबाज़ तो कैद हे अदमी के ख़ातिर।
घेरा के जे लाँघ सकय ऊ दीबाना कहलाबय लोग।