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गाँव में प्रेम / विजय राही

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बेजा लड़ती थी
आपस में काट-कड़ाकड़
जब नयी-नयी आई थी
दोनो देवरानी- जेठानी ।

नंगई पर उतर जाती
बाप-दादा तक को बखेल देती
जब लड़ धापती
पतियों के सामने दहाड़ मारकर रोती

कभी-कभी भाई भी खमखमा जाते
तलवारें खिंच जाती
बीच-बचाव करना मुश्किल हो जाता ।

कई दिनों तक मुँह मरोड़ती
टेसरे करती आपस में
भाई भी नही करते कई दिनों तक
एक दूसरे से राम-राम ।

फिर बाल-बच्चे हुए तो कटुता घटी,
सात घड़ी बच्चों के संग से थोड़ा हेत बढ़ा ।

जैसे-जैसे उम्र पकी
गोडे टूट गए, हाथ छूट गए
एकदम से दोनों बुढ़िया
एक-दूजे की लाठी बन गई ।

अब दोनों बुढ़िया एक दूसरे को
नहलाती है, चोटी गूँथती हैंं
साथ मंदिर जाती हैं
साथ दीप जलाती, गीत गाती हैंं ।

जो भी होता, बाँटकर खाती
एक बीमार हो जाये तो
दूसरी की नींद उड़ जाती ।

उनका प्रेम देखकर
दोनों बूढ़े भी खखार थूककर
कऊ पर बैठने लगे हैं,
साथ हुक्का भरते हैं ।
ठहाका लगाते हैं,
पुरानी बातें याद कर ।

अन्दर चूल्हे पर बैठी
दोनों बुढ़िया भी सुल्फी धरती हुई
एक-दूसरे के कान में
कुछ कहती हैं और हँसती है हरहरार ।