गांधारी / कुलदीप कुमार
वन में आये दो वर्ष हो गये
कब मरेंगे हम सब
कोई जंगली जानवर भी
नहीं खाता हमें
कुन्ती भी है यहाँ विदुर भी
और मेरा हर समय बड़बड़ाने वाला
अन्धा पति तो है ही
एक अनवरत रुदन चलता रहता है
मन के भीतर
जब भी इस पृथा की आवाज़ सुनती हूँ
एक अकथ-सी ज्वाला में जलने लगती हूँ
सौ पुत्रों की माता का एक भी पुत्र जीवित नहीं
और इसके पाँचों जीवित हैं
भीम ने तो दुःशासन का सीना फाड़कर
उसका रुधिर पिया था और
द्रौपदी के बालों का उष्ण रक्त से श्रृंगार किया था
उसी ने दुर्योधन की जंघा तोड़कर
गदा-युद्ध के नियमों को तोड़ा था
लेकिन तब तक कोई नियम बचा ही कहाँ था?
कौन था इस महाविनाश का दोषी?
शान्तनु
जो कभी स्वयं पर संयम नहीं रख पाया
या
भीष्म
जिसने संयम का ऐसा भीषण आदर्श रखा
कि
उस पर चलने के लिए
अन्य सभी मर्यादाएँ तोड़ दी
इस महायुद्ध के लिए
कोई एक व्यक्ति दोषी नहीं है
शान्तनु से लेकर दुर्योधन तक
सभी दोषी हैं
स्वयं मैं भी
और भीष्म?
वह तो सबसे अधिक दोषी हैं
धृतराष्ट्र तो जन्म से ही अन्धा था
लेकिन वह तो अपनी पितृभक्ति और
प्रतिज्ञा के गर्व में
इतने अन्धे हो गये थे
अपनी ही दृष्टि में
इतना ऊँचा उठ गये थे
कि कोई भी नियम उन पर
लागू नहीं होता था
कुरुओं के साम्राज्य के
वही एकमात्र वास्तविक उत्तराधिकारी थे
चित्रांगद और विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद
सत्यवती के आग्रह के बावजूद
वह
सिंहासन पर क्यों नहीं बैठे
जबकि सत्यवती के कारण ही उन्होंने
अविवाहित रहने और सिंहासन पर अधिकार न जताने की प्रतिज्ञा की थी
कितना विडम्बनापूर्ण था यह यथार्थ!
कुरुओं का एकमात्र उत्तराधिकारी
सिंहासन पर नहीं बैठा
लेकिन
जीवन भर सिंहासन का
सबसे सुदृढ़ पाया बना रहा
सेवा करता रहा उन नक़ली कौरवों की
जिनकी शिराओं में
कुरुओं के रक्त की एक बूँद भी नहीं थी
सभी नियोग की सन्तति थे
सिंहासन पर सभी का दावा मिथ्या था
अत्यधिक संयम और इन्द्रिय दमन से
व्यक्ति कितना निर्मम और क्रूर बन सकता है
इसके सबसे बड़े उदाहरण
भीष्म थे
क्षत्रिय राजा राजकुमारियों का अपहरण
स्वयं उनसे विवाह करने के लिए करते थे
लेकिन भीष्म ने नियम तोड़ कर
अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का अपहरण किया
विचित्रवीर्य के विवाह के लिए
और बदले में
कुरु वंश को अम्बा का शाप मिला
जन्मान्ध धृतराष्ट्र के साथ मेरा विवाह भी तो ज़बरदस्ती भीष्म ने ही कराया
कितना हास्यास्पद था
जिसने स्वयं विवाह नहीं किया
वह जीवन भर दूसरों के विवाह कराता रहा
नियोग कराता रहा
बलपूर्वक
महाभारत का युद्ध
बलात्कार का ही परिणाम है
अगर मैं अपनी आँखों पर पट्टी
न बाँध लेती
तो क्या हर माँ की तरह
मैं भी अपने बच्चों की अच्छी परवरिश न करती
उन्हें बिगड़ने से न बचाती
लेकिन मैंने धृतराष्ट्र के प्रति क्रोध और प्रतिहिंसा में अन्धी होकर
सारा जीवन आँखें मूँद कर बिताने का निर्णय किया
अन्धी माँ के बच्चे
दुर्योधन और दुशासन जैसे न निकलते
तो और कैसे निकलते?
इस मामले में कुन्ती बहुत बुद्धिमान थी
फिर कुन्ती का ध्यान आ गया
कभी देखा नहीं उसे
न जाने कैसी लगती है
बातें मीठी-मीठी करती है
जो मेरे जी को और भी अधिक जलाती हैं
कब तक रहेंगे हम सब
एक साथ इस वन में
जहाँ कोई किसी के साथ नहीं है
मेरे पति के साथ मेरा कभी कोई स्नेह-सम्बन्ध बना ही नहीं
विदुर हमेशा विवेक की निरर्थक बातें करता रहा आज्ञाकारी देवरनुमा सेवक बना रहा
कुन्ती से तो मैं बात ही क्या करूँ
इस वन में वैसा दावानल क्यों नहीं भड़कता
जैसा मेरे मन में है?
शायद मेरे मन की पूरी होने वाली है
पशु-पक्षियों में भगदड़ मच गयी है
आकाश धूम्राच्छादित हो रहा है
चलो अच्छा ही होगा अगर
आज हम सब
इस दावानल की गोद में शरण
ले सकें
अन्त समय में मुझे
आँखों पर बँधी पट्टी के बावजूद
सब कुछ साफ़-साफ़ दिख रहा है