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गान बन कर प्राण / त्रिलोचन

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गान बन कर प्राण ये कवि के तुम्हारे पास आए

सौ लहर में पास आए


तुम इन्हें चाहो न चाहो, बात मन की कौन, क्या हो

ये सुरभिमय वायु बन कर, चल रहे जगकी कथा हो

किस घड़ी मन जाग जाए, यह लहर यह राग पाए

और नव परिचय नई अनुभूति का नव हास लाए


रूद्ध चिंता में कहीं हो, तन कहीं हो मन कहीं हो

आँख की पुतली पलक के, पंख में अनमन कहीं हो

कुछ कुहासा छा रहा हो, हृदय भरता जा रहा हो

व्योम पर मन के किसी क्षण मेघ का उल्लास छाए


सुरभि छा जाती रही है, वायु ले आती रही है

और तम के सिंधु कज्जल, उषा रँग जाती रही है

सर्वदा सक्रिय दिवा है, वह किसी शिव की शिवा है

तुम न देखो, देख तुम को इस भुवन में भास आए

(रचना-काल - 31-10-48)