गिरवी / तरुण
मोटी तोंद वाला कोई सूदखोर बनिया,
तोलता है-नोंल, तेल, हल्दी, मिर्च, धनिया।
बाँधे कनमैलिया-सी बदहवास पगड़ी,
हाथ में हैं डंडीमार तखड़ी,
कान के पास है अपना होल्डर खोंसे,
रोकड़-बही नहीं रखता सगे बाप के भी भरोसे।
सौदा, तखड़ी-पलुआ हिला-हिला कर तोलता है,
जल्दी-जल्दी बोलता है!
बकौल कबीर-
‘पूरे बाट परे सरकावे बेगा-बेगा बोले!’
कभी-कभी हिंगाष्टक फाँकता, डकारता,
भारी-भारी बोरे उठा, दमे से हाँफता,
सौदा तोल-तोल बोरे रखता ऊपर, नीचे,
जीवन-मूल्यों की खरीज रखता है टेंट में दबा, या टाट के नीचे!
पूरब-पच्छिम, उत्तर-दक्खिन सभी ओर-
मुझे तो दिख रहा है हर पल अब एक विराट् महाजन सूदखोर!
बहुत पुराना वसूलने मनुष्यता से राई-रत्ती ब्याज-
कोई साहू चढ़ बैठा है गरदन-पकड़े, हम सबकी छाती पर आज!
आदमी की साँस, धड़कन, गीत और सुनहरे सपने-
सब कुछ, कब से उसके यहाँ पड़े हुए हैं गिरवी, अपने!
1980