भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत-शृंगारिका / धीरज पंडित
Kavita Kosh से
जुगुत बर्नेइलो तोह परेम जताय के
हय की करलोॅ हे धानी चुड़ी खनकाय के
मंगिया मे देखों तोरोॅ लाली रे सिनूरवा
उगलोॅ सुरूज जेना भोरे-भिनुसरवा
नैना के ताकै बदरा, कजरा लगाय के-हय कि...
चम-चम चमकै माँगे पे टीका
चन्द्रमा के जोॅत जेना होय जाय फीका
केशिया कुहकि मारै गजरा लगाय के-हय कि...
हिलिर-मिलिर करै कानोॅ रऽ बाली
अँखिया जुड़ाबै देखी अंगिया रऽ जाली
नाक नय-नय-ना-ना करै नथिया हिलाय के-हय कि...
कमर लचकै जेना घैला रोॅ पनियाँ
चलते कदम चुमै सोना सम जवनियाँ
बोलै छै चुनरी तोरोॅ धरती लोटाय के-हय कि....
रूनूर-झूनूर करै गोड़ोॅ के पायल
सुनि-सुनि हिया मोरा, होय जाय घायल
गावै ई ‘धीरज’ सेजिया पे जाय के- हय कि....