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गीत चिड़कल्यां / कन्हैया लाल सेठिया

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मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

लट्टू नै गत मिली पड़ी जद
जा गळबाथ्यां जाळी,
बाण अकासां पूग्यो जद आ
चिमठी चोटी झाली,

कंवळ बणै बो, कंठा तांई
मझ कादै में रहसी।
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

जोत पकड़ में आ बाती री
सूरज स्यूं जा मिलगी,
लौ नै छोड़ जकी चिणगारी
चाली बा ही रूळगी,

घड़ो बणै बो, गळ फांसी खा-
आंधै कुवै उसरसी-
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।

बैठ्यो नीर हिंयाळै माथै
पाछौ समदां आवै,
मरजादां में बंध्या बिना कुण
सुरगां नेड़ो जावै ?

गीत चिड़कल्यां सुर री सांकल
थां नै पहरयां सरसी।
मुगती मिलसी पछै जीवड़ा
पैली बंधणो पड़सी।