भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड़िया की तरह / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी नन्ही बच्ची
खेल रही थी
गुड़िया गुड़िया
गुड़िया के साथ गुड्डा भी था
अकडा बैठा कुर्सी पर
गुड़िया सेवा में थी
पका रही थी खाना
बिछा रही थी बिस्तर
दबा रही थी पैर
मैं हैरान हुआ –किसने सिखाया इसे यह सब
प्रगतिशील पिता मैं चीख पड़ा
कम पढ़ी पत्नी पर –‘क्या बनाएगी
अपनी तरह गंवार इसे। ’
पत्नी चुप रहती है गुड़िया की तरह
पकाती है खाना
बिछाती है बिस्तर दबाती है पैर
और लगी रहती है मेरी सेवा में
हमेशा की तरह।