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गुड्डी / विद्या रानी
Kavita Kosh से
जों तोहें बौखेॅ लागौ-गुड्डी जकाँ
तबेॅ हम्में की करभौं
बेसी सें बेसी यहेॅ हुवेॅ पारै छै
कि बार-बार लटैय केॅ घुमाय-घुमाय
तोरा सम्हारै के कोशिश करभौं
आगू-पीछू बढ़ी केॅ तोरा परवान
चढ़ावै के कोशिश करभौं
तबेॅ जों तोहें नै सुधरभौ
हारी केॅ लटैये फेंकी देभौं
तबेॅ गुड्डी उड़ावै के पहिनें
कन्नी ठीकोॅ सें बाँधवै
एन्होॅ कन्नी बाँधवै कि
गुड्डी उड़तै तेॅ हव्है में
मतरकि बौखेॅ नै पारतै
जेना लट्टू घिरनी रङ नाँची केॅ
फेनू हाथेॅ में नाँचेॅ लागै छै
वैन्हें नाँचवौ तोहें
चाहेॅ रहोॅ दिल्ली में
आकि पटना में ।