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गुलाब की पंखुरियाँ / सरोज परमार
Kavita Kosh से
ये नीली सलवार वाली लड़की
फुग्गा फुला उस छत पर फेंक रही है
उसकी आँखों में झर रही हैं
गुलाब की पंखुरियाँ.
माँजा डोर थामे
खुले बटनों वाला लड़का
उड़ रहा पतंग के संग-संग
उसकी छत के हर कोने से
बटोर लाया गुलाब की पंखुरियाँ.
मुँडेरों की भरी सभा में
चकरघिन्नी खाती मछली की
आँख को बींध दिया
पतंग के झूमर से.
किवाड़ों की ओट से
कई चेहरे हकबकाए
कुछ झरोखों में टँगे
कुलबुलाए
कुछ ने बिचकाए होंठ
कईयों ने फेरी जीभ
ख़ुश्क हो चली ज़मीर पर
उस बेपरवाह के गालों पर
पहली बार ही उतरा सुरूर
उसकी कुँआरी चाल में
झलका है हल्का ग़ुरूर
ओढ़नी नीली पर छिटक गईं
गुलाब की पंखुरियाँ