भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गूँज / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज सामंती पुरानी हो गई
मौत के मुँह की कहानी हो गई

जो भलाई थी बुराई हो गई
जो कमाई थी चुराई हो गई

प्यार वाली आँख कानी हो गई
मात खाई जिंदगानी हो गई

आज रानी नौकरानी हो गई

रचनाकाल: १५-११-१९७६