भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गूँज करता हुआ / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
फूटती है पहाड़ों से उफन
टकराती, शिलाएँ बहा ले जाती
नही है आवेग जल का-
खुद में सभी कुछ को
भींच लेने
छटपटाता, बिफरता आवेग
चट्टान को जल
और मुझ को गूँज करता हुआ .....
(1980)