गोकुल में उद्धव / अमरेन्द्र
देखो-देखो सूत ! कहे, दूर ब्रज की सीमा में
अनल की मूर्ति कोई, दोनों को निहारती
दीपक-शिखा समान खड़ी है अचल अति
कनक की मूर्ति है जो रंग को उभारती
सूर्य का ही कोई खंड आ गिरा है भूमि पर
वृक्ष में साकार जैसे दावागिन राजती
ब्रज है या भिन्न देश छिन्न जो वसुधा से हो
निरख-निरख यह मूक होती भारती ।
माघ-पूस के दिवस जाड़ा सब ठांई दिखे
पर यहाँ विपरित ज्वाला ही समाया है
झुलसे शरीर जाते तन में लहर उठे
देश ही अलग है या ब्रह्म की ही माया है
ठूंठे-ठूंठे द्रुम सभी पल्लव विहीन डाली
ताल न तलैया, जो भी पाया सूखा पाया है
यही है गोकुल, ब्रज ! यमुना नहीं है, रेत
गायें हैं दिखातीं कहाँ; प्रेत की ही छाया है ।
राह में रुका है रथ आगे बढ़ता न अश्व
ताप के परस से ही पीछे लौट आता है
घायल गगन मध्य आ रहा था पाखी एक
ब्रज की लपट में आ वहीं गिर जाता है
उड़ते पखेरु-प्राण गिरा है गोकुल-हद
सूत सुध-बुधहीन दीन हो सुनाता है
पाने हैं समान लाखो जीवन बचेंगे, उधौ
प्राणों को देने में क्या है; पंथ न दिखाता है ।
जैसे घृत संग आग चारो ओर उठे जाग
गूँज उठे बाग-बाग नगर-नगर में
आए हैं उपँगसुत, सजीव हुए हैं बुत
दौड़ चली गोपी द्रुत, डगर-डगर में
हुए हैं चपल, थिर कदम्ब करील फिर
महके सुवास चिर, अगर-अगर में
गोपिकाएँ हैं अधीर नयन समाये नीर
एक ना अनेक पीर कगर-कगर में ।
परदेशी कौन देश आए हो तू कान्ह भेष
हमने सुना था कान्हा गोकुल पधारा है
खड़े हो क्यों गुमसुम, लेने आए हो क्या तुम
पथिक सुनाओ मुझे, नाम क्या तुम्हारा है
श्याम-प्रेम के तरु से क्या हो तुम झड़े फूल
कहो किस कारण से कान्ह ने विसारा है
सब ही वियोगिनी हैं श्याम प्रेम रोगिनी हैं
खोजूँगी तुम्हारे संग, किसका सहारा है ।
कैसे जिएँ हम श्याम विना यह जीवन भार बना लगता
प्राण विहीन कभी तन क्या बच पायेगा कौन हमें ठगता
रैन-दिवा दृग नीर झरे मुख पंकज दीन बना उगता
सुख के कुछ दाने गिरे न अभी, और पीछे से कौन लगा चुगता।
मैं हूँ नदी जलहीन जो हो, बस प्राण बिना तन, जी खलता
पात-प्रसून से हीन तने उनके बिन जीवन है जलता
मंदिर हूँ प्रतिमा न जहाँ, मन श्याम वियोग में है गलता
श्याम बिना ब्रज गोकुल में अब मृत्यु का शासन है चलता।
गोपिन के पीर-तीर छेदते उधौ के हिय
अधीर उपँगसुत नीरव निहारते
क्षण में कराह उठे करुण कथा को सुन
नैन-नभ नीर-उड़ु व्याकुल बिखेरते
गोपी को सम्मुख देख उनको कहते उधौ
तन में दरद उठे रथ से उतरते
आह यही कारण से नैन में समाये नीर
घायल आँसू के कण कपोल बिखेरते ।