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गोपाल सिंह नेपाली / एस. मनोज
Kavita Kosh से
नेपाली का जन्म दिवस यह
साहित्य का त्योहार है
नेपाली का जीवन सारा
जन-जन को उपहार है
बन कविता तुम प्राण फूंकते
रहे सदा प्रहरी बनकर
रेल बहादुर के घर खुशियां
आई थी खुद से चलकर
प्रकृति प्रेम की कविता तेरी
जीवन के संग्राम की
हमें जगाती नित नित गाती
मानव के कल्याण की
रोटियों के प्रश्न उठाती
समता राह दिखाती है
झोपड़ियों में पड़े बेबसों
का भी भाग्य सजाती है
कानन के पीपल के जैसा
बनेगा हो तुम अटल अचल
चंपा अरण्य की खुशबू महके
सुरभित हो पूरा अंचल
आओ सीखे कवित्त छंद और
नैतिकता का पाठ भी
साहित्य चेतना मनुज चेतना
दोनों हो एक साथ ही।