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गोली-कंचे का खेल / कन्हैयालाल मत्त
Kavita Kosh से
है खेलों में खेल निराला,
गोली-कंचे वाला।
दस पैसे की तीन गोलियाँ
छह पैसे का कंचा।
टूट पड़ा गोली पर कंचा,
जैसे भरा तमंचा।
लगा ’टीच’ पर ’टीच’ उड़ाने
आफ़त का परकाला !
देखो, खेल निराला।
गोली, गोली से टकराई,
बाज़ी लगा-लगाकर।
लड़े सभी रंगीन लड़ाई,
जेबें खला-खलाकर।
कुछ जीते, कुछ रहे बराबर,
कुछ का पिटा दिवाला !
देखो, खेल निराला।