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गौरेया का गीत / सुरेश विमल

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गौरेया का गीत
अचानक जब तोड़ता है
एक विषाद भरी चुप्पी
जंगल होते हुए इस आंगन में
भेड़ियों के गुर्राने की आवाज़
साफ़ सुनाई देती है...

गमलों में लगे गुलाब
इससे पहले
कि अपने रंगों से उल्लसित
और गंध से सुवासित
कर पाएँ इस आंगन को
कुछ घृणास्पद कीड़ों द्वारा
चाट लिए जाते हैं
चुपचाप...

इस घर को तमाम खिड़कियों
और रौशनदानों पर
तैनात मकड़ियाँ
उलझा लेती हैं चांदनी को
अपने चक्रव्यूह में
और वंचित कर देती हैं
भीतर के समूचे संसार को
इसके शीतल
वत्सल स्पर्श से...

गौरेया का गीत
गुलाब की सुरभि
और चांदनी का स्पर्श
एक नये सिरे से
इन सबको सहेजने
और इस घर को
फिर से
संवारने की प्रक्रिया में
देना होगा तुम्हें भी
मेरा साथ...!

बहुत प्रेरक
और सुखद होती है मित्र
साथ साथ चलने की
अनुभूति...!