भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गौरैया / रोहित रूसिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब आओगी
मेरे आँगन
फिर से तुम
गौरैया

सुबह सवेरे
मीठी-सी धुन
एक प्रभाती
की-सी गुनगुन
कब गाओगी
मेरे आँगन
फिर से तुम
गौरैया

लेकर मिट्टी
का सोंधापन
सावन की
भीगी बदली बन
कब छाओगी
मेरे आँगन
फिर से तुम
गौरैया

बचपन के वो
बीते पलछिन
भोले चंचल
चटकीले दिन
कब लाओगी
मेरे आँगन
फिर से तुम
गौरैया
कब आओगी
मेरे आँगन
फिर से तुम
गौरैया