भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर / विनोद विट्ठल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक

पहाड़ छोड़ देते हैं अपनी अकड़
जँगल अपनी जड़

धरती बनना चाहती है माँ
आकाश पिता बनने नीचे उतरता है

नदी की तरह मुस्कुराता है एक बच्चा ।

दो

हार जाते हैं योद्धा
थक जाते हैं शक्तिवान
सो जाते हैं सांसारिक

सबके सपनों में
दरवाजे-सा जगता रहता है ।

तीन

बहुत अकेले हो जाते हैं
ऊबने लगते हैं हर-एक से
घेरने लगती है स्मृतियाँ और आशँकाएँ
समय हो जाता है लम्बा और भारी

एक क़िस्सा-गो जो दूसरी दुनिया में ले जाता है ।